नवरात्रि प्रत्येक वर्ष में 4 बार आती है- पौष, चेत्र, आषाढ़ और अश्विन मास में। जिसमें से चैत्र और आश्विन मास एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। पौष और आषाढ़ को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।
शक्ति की उपासना के इस पर्व नवरात्रि की एक बार सत्य और धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है, वहीं दूसरी बार इसे भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
आखिर क्यों मनाया जाता है नवरात्रि का त्योहार?
इस सवाल के पीछे दो कथाएं प्रचलित हैं। आइएं जानें इन दो कथाओं के बारे में।
प्रथम कथा
इस कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध से पहले चंडी देवी की पूजा कर देवी को प्रसन्न करने की बात कही थी। विधि के अनुसार चंडी पूजन और हवन के लिए दुर्लभ 108 नील-कमल की व्यवस्था भी करने को कहा था।
वहीं दूसरी ओर रावण ने भी विजय के लिए चंडी का पूजन करना शुरू कर दिया। यह बात पवन के माध्यम से इंद्रदेव ने श्रीराम तक पहुंचाई थी।
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रावण ने मायावी तरीके से पूजा स्थल से एक नील-कमल गायब कर दिया, जिससे श्री राम की पूजा बाधित हो जाए। श्रीराम का संकल्प टूटता हुआ नज़र आने लग गया। सभी में इस बात का भय व्याप्त हो गया कि कहीं मां दुर्गा क्रोधित ना हो जाए।
तभी श्रीराम को याद आया कि उन्हें कमल-नयन नवकंज लोचन भी कहा जाता है। तभी उन्होंने अपने एक नयन को मां दुर्गा की पूजा में समर्पित करने का विचार किया।
श्रीराम ने जैसे ही अपने नेत्र को निकालने की कोशिश की, तभी मां दुर्गा वहां प्रकट हो गई। पूजा से प्रसन्न होकर उन्होंने श्री राम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया।
दूसरी तरफ रावण की पूजा के समय हनुमान एक ब्राह्मण बालक का रूप लेकर वहां पहुंच गए और पूजा कर रहे ब्राह्मणों के एक श्लोक “जय देवी आभूत हरनी” के स्थान पर ‘ करनी ‘ उच्चारित कर दिया।
हरनी का अर्थ होता है भक्तों की पीड़ा दूर करने वाली और करनी का अर्थ होता है पीड़ा देने वाली।इससे मां दुर्गा नाराज़ हो गई और रावण को श्राप दिया कि रावण का सर्वनाश हो।
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दूसरी कथा
एक अन्य कथा के अनुसार महिषासुर को उसकी उपासना से खुश होकर देवताओं ने अजय होने का वर प्रदान किया था। इस वरदान को प्राप्त करके महिषासुर ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और नर्क को स्वर्ग के द्वार तक विस्तारित कर दिया। महिषासुर ने सूर्य, चंद्र, अग्नि, इंद्र,वायु , यम, वरुण व अन्य देवताओं के भी अधिकार छीन लिए और स्वर्ग लोक का मालिक बन बैठा।
देवताओं को महिषासुर के भय से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ा। तब महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने मां दुर्गा की रचना की।
महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने अपने सारे अस्त्र-शस्त्र मां दुर्गा को समर्पित कर दिए जिससे वह बलवान हो गई और 9 दिनों तक उनका महिषासुर से संग्राम चला। अंत में महिषासुर का वध करके मां दुर्गा महिषासुर मर्दिनी कहलाई।