हम बात करेंगे महाभारत Mahabharat के बाद जीवित लौटे उन योद्धाओं की जिनके बारे में इतिहास में अधिक वर्णन नहीं किया गया है।
जब महाभारत का ज़िक्र होता है तो आंखों के सामने कुरुक्षेत्र का वह दृश्य आ जाता है जहां श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हैं और दूर-दूर तक सिर्फ हाथी, घोड़े और हथियार पकड़े हुए सैनिक ही नजर आते हैं । यह युद्ध मानवता को कई सारे ज्ञान देता है परन्तु इस युद्ध में हज़ारों सैनिकों का रक्त बहाया गया था।
कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की धरती आज भी लाल इसलिए है क्योंकि 18 दिन तक चले महाभारत के इस युद्ध में इतना लहू बहाया गया था कि इसकी माटी ने ही अपना रंग बदल लिया था।
कौरवों की हार के बाद कुरुक्षेत्र में चारों ओर सिर्फ चीखें सुनाई दे रही थीं। लाशों के उस ढेर में सिर्फ 12 लोग ही जीवित थे। आइए हम बताते हैं आपको उन वीर योद्धाओं के बारे में जिन्होंने जीवित रह कर इस ऐतिहासिक युद्ध को अपने नाम कर लिया था।
माना जाता था कि इस चल रहे महायुद्ध के बारे में श्री कृष्ण को पहले से ही सब ज्ञात था। युद्ध में करोड़ों सैनिक, घोड़े और हाथी शामिल थे। ऐसे में जीवित और मृत सैनिकों की गिनती कैसे लगाई गई होगी?
कहा जाता है कि राजा उडुपी दोनों तरफ की सेनाओं के लिए भोजन का इंतज़ाम किया करते थे। परंतु रोज़ हज़ारों सैनिकों की मृत्यु होने की वज़ह से वह अंदाज़ा नहीं लगा पाते थे कि कितने लोगों का भोजन तैयार किया जाए। इसलिए उन्होंने श्री कृष्ण की सहायता लेनी चाही।
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वह रोज़ाना श्री कृष्ण के पास उनकी मनपसंद मूंगफलियां ले कर जाते थे। श्री कृष्ण कटोरे में से कुछ दाने उठाते और बाकी शेष छोड़ देते। इसके बाद राजा उडुपी कटोरे में बचे दानों की गिनती करते थे।
अगर कटोरे में दस दाने कम हैं तो उसका अर्थ था कि अगले दिन युद्ध में दस हज़ार सैनिकों की मृत्यु हो जाएगी। इस तरह उडुपी अंदाज़ा लगा कर सैनिकों के लिए भोजन तैयार किया करते थे।
कौरवों की सेना से कौन रहा था महाभारत के अंत तक जीवित ?
कृपाचार्य
महाभारत Mahabharat के युद्ध में सबसे सुरक्षित योद्धा कृपाचार्य को माना जाता है क्योंकि उन्हें चिरंजीवी रहने के वरदान प्राप्त था। कृपाचार्य की बल पर ही युधिष्ठिर को युद्ध जीतने पर भरोसा था।
उन्होंने ही धृतराष्ट्र और पांडु के पुत्रों को धनुर्विद्या सिखाई थी। कर्ण की मृत्यु के पश्चात कृपाचार्य ने दुर्योधन को पांडवों से संधि करने की सलाह दी थी।
कृतवर्मा
अश्वथामा का साथी कृतवर्मा श्री कृष्ण के सबसे वफ़ादार और साहसी सैनिकों में से एक थे। श्री कृष्ण के आदेश पर वह युद्ध में कौरवों की सेना के साथ शामिल हुए और अश्वथामा के साथी बने।
द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा के मस्तिष्क पर अमूल्य मणिविद्यमान थी जो कि उन्हें निर्भय रखती थी। यही कारण है कि युद्ध में कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता था। द्रोणाचार्य और अश्वथामा ने मिल कर पांडवों की हार सुनिश्चित कर दी थी।
यह सब देख कर श्री कृष्ण ने अश्वथामा के मारे जाने की अफ़वाह फैला दी। दरअसल खबर हाथी अश्वथामा के मरने की थी, परंतु सही समय पर शंख बजा कर श्री कृष्ण ने द्रोणाचार्य को हाथी शब्द सुनने से रोक लिया। पुत्र के मारने की खबर सुन कर द्रोणाचार्य ने हथियार त्याग दिए और दृष्टद्युम ने तलवार से उनका वध कर दिया।
अश्वथामा
पिता के साथ हुए धोखे से निराश हो कर अश्वथामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जिसके बाद श्री कृष्ण ने उन्हें कलयुग के समाप्त होने तक कोढ़ी के रूप में जीवित रहने का श्राप दे डाला। ऐसा माना जाता है कि वह आज भी हिमालय की गुफाओं में जीवित हैं।
क्या पांचों पांडव रहे थे महाभारत के अंत तक जीवित?
पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर युद्ध के बाद भी जीवित रहे थे। उन्होंने युद्ध खत्म होने के बाद सभी सैनिकों का दह संस्कार किया था। पांडु पुत्र भीम भी कौरवों का अंत कर के युद्ध से जीवित वापिस आए थे।
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श्री कृष्ण की छत्रछाया में चलते अर्जुन का युद्ध में जीवित रहना निश्चित था। जिसके सारथी स्वयं श्री कृष्ण हो उसे भला मृत्यु कैसे छू सकती थी। नकुल और सहदेव ने भी युद्ध में वीरता के साथ अपने और अपने भाइयों की रक्षा करते हुए कौरवों का वध किया था।
इस तरह 3 कौरवों, 5 पांडवों और श्री कृष्ण समेत 3 अन्य वीरों ने महाभारत का वो मंज़र देखा था जहां सिर्फ लाशें ही लाशें नज़र आ रही थी।