महाभारत हिन्दू धर्म का प्रमुख ग्रंथ है। वेदव्यास द्वारा लिखे गए इस ग्रंथ में प्राचीन भारत के इतिहास का वर्णन किया गया है।
साहित्यों के अनुसार यह वैदिक काल का सबसे बड़ा युद्ध था। यह कौरवों को पांडवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। पांडव और कौरवों के इस युद्ध में श्री कृष्ण पांडवों के सारथी थे।
कौरव और पांडव दोनों दल ही बेहद शक्तिशाली थे। महाभारत की गाथा वीर योद्धाओं से भरी पड़ी है। जहां एक तरफ़ भीष्म पितामह , दुर्योधन, कृपाचार्य जैसे महान योद्धा थे वहीं दूसरी ओर महाबलशाली भीम, सर्वश्रेष्ठ अर्जुन, अभिमन्यु और स्वयं श्री कृष्ण थे।
परंतु आज हम जिसके बारे में आपको बताने जा रहे हैं, वह महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धा थे। धर्म की रक्षा के हेतु उन्होंने खुद को इस धर्म युद्ध से दूर रखना ही बेहतर समझा था।
जी हां हम बात कर रहे हैं हम सबके प्रिय विदुर की। विदुर को दूसरा कृष्ण भी कहा जाता था। वह जानते थे कि अगर वह इस युद्ध में हिस्सा लेंगे तो उन्हें कौरवों की तरफ़ से लड़ना होगा, इसलिए उन्होंने युद्ध से दूर रहना ही सही समझा।
उनके पास स्वयं श्री कृष्ण का दिया हुआ चमत्कारी धनुष भी था। अगर वह चाहते तो एक तरफ़ की पूरी सेना को पल भर में ख़तम कर सकते थे परन्तु उन्होंने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं किया। इस महान योद्धा को धर्मराज का रूप भी माना जाता था।
आखिर कौन थे विदुर?
पूर्वजन्म में ऋषि मांडव्य को एक राजा ने चोरी के अपराध में गलती से सूली पर चढ़ा दिया था। लेकिन कई दिनों तक सूली पर लटकने से भी मांडव्य ऋषि की मृत्यु नहीं हुई।
यह सब देख कर राजा आश्चर्यचकित हो गया। उसने अपने निर्णय पर पुर्विचार किया। तब उसे ज्ञात हुआ कि उसने गलत व्यक्ति को सूली पर चड़ा दिया था। अपनी गलती पर शर्मिंदा हो कर वह ऋषि से माफ़ी मांगता है। इसके पश्चात् ही ऋषि की मृत्यु हो जाती है।
यमलोक पहुंच कर ऋषि मांडव्य यमराज से सवाल करते हैं की उन्हें इतनी भयानक मृत्यु क्यों दी गई। इस पर यमराज उन्हें बताते हैं कि जब ऋषि 12 साल के थे तब उन्होंने एक पतंगे को सुई से मारा था।
यह सुन कर ऋषि बहुत क्रोधित हो जाए हैं और कहते हैं कि तब वह एक नादान बालक थे, उन्हें ज्ञान नहीं थे कि वह क्या कर रहे हैं। उन्होंने यमराज पर अन्याय करने का आरोप लगाते हुए उन्हें श्राप दिया कि उन्हें पृथ्वी पर अछूत के घर जन्म लेना होगा। इसी श्राप के चलते स्वयं यमराज ने पृथ्वी पर विदुर के रूप में एक दासी के घर जन्म लिया।
क्यों किया विदुर ने युद्ध लड़ने से इंकार?
महाभारत में विदुर को दूसरा कृष्ण समझा जाता था। सभी उन्हें बहुत सम्मान दिया करते थे। एक बार जब विदुर ने दुर्योधन से युद्ध ना करने और शांति प्रस्ताव को मानने की सलाह दी तो दुर्योधन ने अप्रसन्न हो कर विदुर को कौआ और गीदड़ कह दिया। इस बात से क्रोधित हो कर विदुर ने अपना चमत्कारी धनुष तोड़ दिया और युद्ध ना लड़ने का फैसला किया।
उन्होंने अपने नेत्रहीन पिता को भी ज्ञान दिया कि दुर्योधन का जन्म इस कुल के विनाश के लिए हुआ है, इसलिए बेहतर होगा कि आप दुर्योधन का परित्याग कर दें। परंतु उस समय कोई उनकी बात को समझ नहीं पाया। अपने प्रिय पांडवों की रक्षा के लिए विदुर ने युद्ध को रोकने का प्रयास किया पर असफल रहे।
यह बात सत्य है कि अगर विदुर यह युद्ध लड़ते तो उनसे अधिक शक्तिशाली और कोई भी ना होता।