भारत के हर हिस्से में क्यों और कैसे मनाई जाती है दिवाली?

आइए देखें किस तरह मनाया जाता है यह रोशनी का त्योहार भारत के विभिन्न राज्यों में।

उत्तर भारत

उत्तर भारत में इस त्योहार को मनाने के पीछे लोगों की धार्मिक भावनाएं हैं। माना जाता है कि दिवाली के दिन श्री राम 14 वर्षों का वनवास काट कर सीता मैया और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे।

श्रीराम कार्तिक मास की अमावस्या को अयोध्या लौटे थे। इस दिन हर जगह घना अंधेरा था। इसलिए उनके स्वागत के लिए पूरी अयोध्या को दीयों की रोशनी से सजाया गया था। रोशनी और पटाखों से उनके आगमन की तैयारी की गई थी।

श्री राम लंकापति रावण को पराजित करके अयोध्या लौटे थे इसलिए इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस त्यौहार पर हिंदू लोग घरों में दीपक जलाकर इस त्यौहार का जश्न मनाते हैं। यूपी-बिहार हरियाणा, पंजाब, हिमाचल आदि स्थानों पर इसी प्रकार इस त्यौहार को मनाया जाता है।

किस तरह मनाया जाता है यह त्योहार?

उत्तर भारत में इस त्यौहार की शुरुआत दशहरे से की जाती है। इन दिनों के दौरान रामलीला प्रस्तुत की जाती है जिसमें श्री राम की पूरी कहानी को दर्शाया जाता है और आखिर दशहरे वाले दिन श्री राम द्वारा रावण का वध करके इस कहानी का अंत किया जाता है।

हिमाचल प्रदेश दिल्ली और पंजाब में लोग अक्सर जुआ खेलकर इस त्योहार को मनाते हैं। इन स्थानों पर दिवाली वाले दिन इन खेलों को खेलना शुभ माना जाता है।

पंजाब में सिख समुदाय के लोग इस त्यौहार को घरों में दीए जलाकर सादे तरीके से मनाते हैं। गुरुद्वारों में भी मोमबत्तियां और दीयों से सजावट की जाती है। यूपी, पंजाब और बिहार में मोमबत्तियां, रंगोली और लाइटों से घरों की सजावट की जाती है।

दिवाली के कई दिनों पहले से ही औरतें घरों की सफाई करने में व्यस्त हो जाती हैं। लोग एक दूसरे को उपहार देकर इस त्योहार में ख़ुशियाँ बांटते हैं। रात में घरों पर लक्ष्मी पूजा करना भी शुभ माना जाता है।

पूर्वी भारत

पूर्वी भारत में भी इस त्यौहार को जोश और उल्लास से मनाया जाता है। अक्सर लोग रात में घरों के दरवाज़े खुले छोड़ते हैं ताकि लक्ष्मी मां आ कर उन्हें आशीर्वाद दे सकें। घरों में मोमबत्ती और दीयों से रोशनी की जाती है क्योंकि लोगों का मानना है कि लक्ष्मी माता अंधेरे वाले घरों में आना पसंद नहीं करती।

पश्चिम बंगाल और असम

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के 6 दिन पश्चात लक्ष्मी पूजा की जाती है। इस पर्व को काली पूजा के रूप में मनाया जाता है। देर रात्रि में दिवाली के दिन मां काली की पूजा की जाती है। सभी स्थानों पर काली मां के भव्य पंडाल सजाए जाते हैं।

दिवाली की रात को पितृ पक्ष से भी जोड़ा जाता है जिस वजह से लंबे-लंबे खंभों के पास दिए जलाकर पितृों की शांति के लिए, उन्हें स्वर्ग की राह दिखाई जाती है। आज भी बंगाल में इस प्रथा का पालन किया जाता है। इस त्योहार पर घरों में रंगोली बनाना भी शुभ माना जाता है।

ओडिशा

पश्चिम बंगाल की तरह ओडीशा में भी पितृों को श्रद्धांजलि देकर इस त्यौहार को मनाया जाता है। यहां भी पितृों को याद करते हुए कहा जाता है कि आप अमावस्या की रात को यहां आते हैं और हम रोशनी दे कर आपको स्वर्ग की राह दिखा रहे हैं ताकि भगवान जगन्नाथ की शरणों में आपको मोक्ष की प्राप्ति हो जाए ।

पश्चिमी भारत

गुजरात

गुजरातियों के लिए यह त्योहार नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है। गुजरात की स्थानीय मार्केट में दिवाली के दिनों में बहुत अच्छा कारोबार देखा जाता है। घरों में रंगोली बनाकर सजावट की जाती है। पद चिन्ह बना कर माता लक्ष्मी का भी स्वागत किया जाता है।

उत्तर भारत की तरह यहां भी इस त्यौहार को 5 दिन तक मनाया जाता है। यहां भी घरों में रात भर अखंड दिया जलाया जाता है और सुबह उस से प्राप्त हुई राख से महिलाएं आंखों में काजल लगाया करती हैं। इस परंपरा को बेहद शुभ माना जाता है। दिवाली के दिनों में कोई भी नया कार्य संपन्न करना या नई वस्तुएं खरीदना भी शुभ माना जाता है।

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में इस त्यौहार को 4 दिन तक मनाया जाता है पहला दिन होता है वसुबारस का जहां गौ माता और बछड़ों की पूजा की जाती है। यह परंपरा मां और बच्चे के बीच के स्नेह का प्रतीक है।

दूसरे दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है जहां नया बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। तीसरे दिन को नर्क चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग सुबह स्नान करके मंदिर में पूजा करने जाते हैं। इसके सिवा घरों में लाजवाब मिठाईयां जैसे कि लड्डू और करंजी बनाई जाती हैं।

तीखे पकवान जैसे कि चकली और सेव भी बनाया जाता है। इस दावत को फराल कहा जाता है। चौथे दिन घरों में लक्ष्मी पूजा की जाती है और धन व सोने के आभूषणों को भी पूजा जाता है।

दक्षिण भारत

दीवाली को तमिल कैलेंडर के हिसाब से ऐप्पसी महीने में मनाया जाता है। यह दिन अमावस्या से एक दिन पहले आता है। दक्षिण भारत में नर्क चतुर्दशी दीवाली के जश्न का मुख्य दिन होता है।

उस दिन ओवन को साफ करके उसे नींबू से लिप्त किया जाता है। ओवन पर धार्मिक चिन्ह बनाए जाते हैं, उसे पानी से भरा जाता है और दीवाली वाले दिन इनका इस्तेमाल तेल स्नान के लिए किया जाता है।

लोग घरों में रंगोली और कोलम की कलाकृतियां बनाकर सजावट करते हैं। दिवाली के दिन लोग तेल स्नान करके नए कपड़े पहनते हैं। लाजवाब मिठाइयों और पटाखों से लोग इस पर्व का जश्न मनाते हैं।

दक्षिण भारत में इसे थलाई दीपावली भी कहा जाता है जिसके अनुसार नवविवाहित दंपत्ति दुल्हन के मायके में इस त्यौहार को मिलकर मनाते हैं।

आंध्र प्रदेश

देश के इस हिस्से में हरिकथा या हरि की जीवन गाथा गाई जाती है। माना जाता है कि श्री कृष्ण के सहचारी सत्यभामा ने राक्षस नरकासुर का वध किया था इसलिए इस दिन सत्यभामा की प्रतिमा कि पूजा की जाती है।
कर्नाटक

पहले दिन यानी आश्विन कृष्ण चतुर्दशी के दिन लोग तेल स्नान करके दिन की शुरुआत करते हैं। माना जाता है कि नरकासुर का वध करने के पश्चात श्री कृष्ण ने तेल स्नान करके अपने शरीर से खून के निशान मिटाए थे। बलिप्रतिपदा इस पर्व का तीसरा दिन है जहां महिलाएं घरों में खूबसूरत रंगोलियां बनाती हैं और गाय के गोबर से किले बनाती हैं।

Diwali Puja Timings and Muhurat

Amavasya Tithi Begins: 05:27 PM on Oct 24, 2022
Amavasya Tithi Ends: 04:18 AM on Oct 25, 2022
Laxmi puja mahurat: 05:50 PM to 08:22 PM

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