चित्रांगदा

महाकाव्य महाभारत के अनुसार, चित्रांगदा, अर्जुन की एक पत्नी थीं। जब अर्जुन इन्द्रप्रस्थ की ओर से मैत्री संदेश लिये मणिपुर की राजधानी पहुंचे तब मणिपुर राज्य की राजकुमारी चित्रांगदा अर्जुन के रूप पर मुग्ध हो गई।

जब राजकुमारी ने अर्जुन के समक्ष अपना प्रेम प्रस्ताव रखा तो अर्जुन ने उसे नकार दिया जिससे राजकुमारी चित्रांगदा को अत्यंत पीड़ा हुई और उसने अपना जीवन समाप्त करने का प्रण कर लिया।

जब महाराज इस बात से अवगत हुये तो उन्होने अर्जुन के समक्ष शर्त रखी कि यदि वो मणिपुर की मित्रता चाहता है तो उसे चित्रांगदा से विवाह करना पड़ेगा अन्यथा वो उसी समय राज्य की सीमा से निकल जाए।

श्री कृष्ण के परामर्श से अर्जुन ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और चित्रांगदा से विवाह रचा लिया। जब कुछ माह उपरांत अर्जुन नागलोक पहुंचे तो उनकी पत्नी नागकन्या उलूपी ने द्वेष भावना से चित्रांगदा के विरुद्ध अर्जुन को भड़का दिया।

अर्जुन ने निराधार संदेह के कारणवश चित्रांगदा को उस समय त्याग दिया जब वो गर्भवती थी। तब चित्रांगदा ने ठान लिया की वो इस अपमान का बदला अर्जुन की पराजय से लेगी

चित्रांगदा ने पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम वभ्रुवाहन रखा। उसे सारी युद्ध कलाओं मे निपुण कर अर्जुन को पराजित करने के काबिल बना दिया और उससे अर्जुन को पराजित करने का वचन माँगा। उधर जब महाभारत के युद्ध के उपरांत शान्ती अश्वमेघ यज्ञ का अश्व श्यामकर्ण मणिपुर की सीमा मे प्रवेश करता है

तब वभ्रुवाहन भीम को मूर्च्छित कर कर्णपुत्र का वध कर देता है और अन्त मे माँ गंगा के दिये हुये बाण से अर्जुन का भी वध कर देता है। जब चित्रांगदा घटनास्थल पर आती है तो वभ्रुवाहन को यह ज्ञात हो जाता है की अर्जुन ही उसके पिता है। श्री कृष्ण के मार्गदर्शन से वभ्रुवाहन नागलोक से मणि लाकर अर्जुन को पुनर्जीवित करते है।

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