ब्रॉडवे की पहली विजेता लॉरेल ग्रिग्स कि 5 नवंबर को दमे के अटैक की वजह से मृत्यु हो गई।
लॉरेल ने 6 साल की उम्र में ‘ कैट ऑन ए हॉट टिन रूफ’ नाम की फिल्म में स्कारलेट जॉनसन के विपरीत काम किया था।
उनकी बेहतरीन परफॉर्मेंस की वजह से 6 साल की उम्र में ही उन्हें ब्रॉडवे से सम्मानित किया गया था।
इस नौजवान और खूबसूरत अभिनेत्री की मृत्यु का शोक पूरा थिएटर ग्रुप मना रहा है। लॉरेल की अचानक हुई मौत पर हर कोई शोक में डूबा हुआ है।
लॉरेल ने कई अन्य फिल्मों और टेलीविजन कार्यक्रमों में भी बेहतरीन काम किया था, जिनमें से ‘सैटर्डे नाइट लाइव’ बेहद प्रसिद्ध कार्यक्रम था।
हर कोई उनकी मृत्यु के कारण को सोचकर हैरान है। दमे जैसी बीमारी आजकल बहुत लोगों को होती है परंतु इस बीमारी से किसी की मृत्यु हो जाना बेहद ही हैरान कर देने वाला और निराशाजनक है।
लॉरेल के दादा डेविड बी. रिवलिन ने फेसबुक पर लॉरेल की मृत्यु की घोषणा करते हुए लिखा कि वह बेहद भारी मन से लोगों को यह बताना चाहते हैं कि उनकी खूबसूरत और प्रतिभावान पोती लॉरेल की दमे के अटैक से मृत्यु हो गई है।
उन्होंने यह भी बताया कि माउंट सेनिया ने बहादुरी से लॉरेल को बचाने की कोशिश की परंतु उनके प्रयासों के बावजूद लॉरेल आज हम सब से दूर परियों के देश में हैं ।
सीएनएन से बात करते हुए लॉरेल के पिता एंड्रियो ग्रिक्स ने बताया कि लॉरेल पिछले 2 वर्षों से दमे की बीमारी से जूझ रही थी।
किसी किसी महीने वह बेहद स्वस्थ रहती थीं और उन्हें कोई भी तकलीफ़ महसूस नहीं होती थी परंतु तब भी उनके पिता उन्हें लगातार मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया करते थे।
इस बार जब उन्हें दमे का अटैक आया तो उनकी हालत बेहद नाज़ुक हो गई और 2 घंटे के पश्चात दिल का दौरा पड़ने से लॉरेल की मृत्यु हो गई। उन्होंने यह भी कहा कि हर किसी ने लॉरेल को बचाने के लिए संभव प्रयास किए परंतु यह सब बेहद अचानक हो गया।
आखिर अस्थमा यानी दमा है क्या?
रोग नियंत्रण व रोकथाम केंद्र के अनुसार 2017 में यूएस की 25 मिलीयन आबादी दमे की बीमारी से पीड़ित रही है, जिसका अर्थ है देश की 8% आबादी इस बीमारी से पीड़ित थी।
इन आंकड़ों में छह मिलियन की संख्या में बच्चे भी मौजूद थे। केंद्र के अनुसार दमे की बीमारी बच्चों में मौजूद सबसे लंबी बीमारी है।
हालांकि अधिकतर पीड़ित लोगों के लिए यह जानलेवा नहीं होती परंतु 2017 में 3,564 मरीज़ों कि इस बीमारी से मृत्यु हो गई थी।
अस्थमा फेफड़ों की एक बीमारी है जहां मरीज़ को लगातार खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ़ होती है। इस बीमारी में सुबह या रात के समय अधिक खांसी होना भी स्वाभाविक है।
पूर्वी पारिख ने बताया कि अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जहां वायुमार्ग में सूजन व उसके संकीर्ण होने के कारण हम सांस छोड़ने में असमर्थ हो जाते हैं।
इस वजह से आवश्यक गैस विनिमय सही रूप से नहीं हो पाता। जिसके पश्चात हमारे खून में कार्बन डाइऑक्साइड इकट्ठी होती रहती है और हमें श्वसन में तकलीफ़ होती है।
दमा के संकेत
- रात के समय अधिक खांसी होना
- श्वसन में तकलीफ़
- छाती में जकड़न व भारीपन
- घरघराहट
- लंबे समय से चल रहा खांसी – जुकाम
दमे के विशेष कारणों से अभी भी हम अज्ञात हैं परंतु विशेषज्ञों का मानना है कि दमे के पीछे आनुवंशिक, परिवेष्टक व व्यावसायिक कारण हैं। धूल मिट्टी से एलर्जी और धूम्रपान आदि भी इसके कुछ कारणों में से एक है।
दमे की बीमारी को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता परंतु इस पर नियंत्रण रखा जा सकता है। गोली के रूप में या सांस खींचने वाले यंत्र से दवाइयां ले कर इस बीमारी का इलाज किया जाता है।
परंतु सवाल यह है कि दमे का अटैक क्या है और किस तरह इससे एक व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है ?
दमे का अटैक तब आता है जब मरीज़ अस्थमा ट्रिगर्स के संपर्क में आता है। यह ट्रिगर्स हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकते हैं।
इसका अर्थ है ऐसे पदार्थ जिनसे दमे के मरीज़ को सांस लेने में तकलीफ़ बढ़ जाती है। इन ट्रिगर्स के संपर्क में आते ही व्यक्ति को खांसी, घरघराहट, छाती में जकड़न महसूस होने लग जाती है। वायुमार्ग में सूजन होने के कारण बहुत कम मात्रा में वायु शरीर से अंदर बाहर हो पाती है।
अस्थमा एंड एयरवेज़ डिजीज प्रोग्राम के डायरेक्टर जॉफरे चुप्प ने बताया कि सांस की विफलता के कारण ही दमे के मरीज़ों को मृत्यु का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने बताया कि आसपास की मांसपेशियों की ऐंठन करके वायुमार्ग अधिक तंग हो जाता है और ब्रोंकियल ट्री यानी श्वसन अंग में सूजन आ जाती है।
यह सूजन इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि मरीज़ अपने फेफड़ों को सही रूप से फुला या फैला नहीं सकता, जिसके चलते शरीर में गैस विनिमय रुक जाता है।
इसके पश्चात मरीज़ बेहोश हो जाता है और ऑक्सीजन की कमी के कारण उसका हृदय भी काम करना बंद कर देता है। इस तरह दिल का दौरा पड़ने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
डॉक्टर चुप्प ने बताया कि अक्सर इस तरह की स्थिति लंबे समय से और गंभीर रूप से बीमार लोगों में ही देखी जाती है परन्तु कम गंभीर लोगों में भी कई बार यह हो सकता है।
उन्होंने बताया कि कई बार दमा के मरीज़ जब एकदम से किसी एलर्जन के संपर्क में आते हैं या फिर निमोनिया या इनफ्लुएंजा जैसे माहौल में जाते हैं तो एकदम से उनकी हालत नाज़ुक हो जाती है।
डॉक्टर चुप्प ने ग्रिग्स की मौत पर निराशा जताते हुए कहा कि लॉरेल जैसी स्वस्थ लड़की का इस तरह दिल के दौरे से मरना बेहद हैरानी और दुख की बात है।
डॉ पारिख ने भी कहा कि कई व्यक्ति इस बीमारी के साथ भी वर्षों तक खुशहाल और स्वस्थ जीवन जीने में सफल रहते हैं।