शिशु को रखें मधुमेह से सुरक्षित

Healthy Pregnancy with Diabetes in Hindi मधुमेह के मामले बढ़ते जा रहे  हैं। युवाओं में मधुमेह के लक्षण अधिक देखे जा रहे हैं, वहीं मोटापे के चलते महिलाएं भी तेज़ी से इसका शिकार हो रही हैं।

गर्भवती महिलाएं अगर मधुमेह से ग्रसित हैं, तो होने वाले बच्चे पर भी इसका असर पड़ सकता है। गर्भवस्था के दौरान महिलाओं और उनके अजन्मे शिशु पर मधुमेह का प्रभाव पड़ता है, कुछ सावधानियां अपनाकर शिशु को सुरक्षित रखा जा सकता है.

गर्भावस्था में शिशु को खतरा

मधुमेह का काफी हद तक प्रभाव गर्भावस्था के समय अजन्मे शिशु पर भी पड़ता है।

अगर गर्भवती महिला के रक्त में शर्करा की अधिक मात्रा है, तो यह अपरा(प्लेसेंटा) से होते हुए शिशु तक पहुंच जाती है।

जिस कारण गर्भ में पल रहे शिशु का वजन छठे महीने में बढ़ने की संभावना अधिक होती है।

अधिक वजन वाले शिशु प्रसव के समय मुश्किल पैदा कर सकते हैं।

यहां तक कि कई बार यह शिशु के जन्म से पहले मृत्यु का कारण भी बन सकता है।

अनियंत्रित मधुमेह की वजह से शिशु के आसपास एमनियोटिक(भ्रूणावरण) द्रव्य भर जाता है।

इस स्थिति को पॉलीहाइड्रेमनिओज़ कहा जाता है।

डायबिटिक गर्भावस्था की स्थिति में भी अधिकांश महिलाएं स्वस्थ शिशु को जन्म देती हैं।

लेकिन ऐसे बच्चों में भविष्य में मोटापे और मधुमेह होने का ख़तरा अन्य बच्चों की तुलना में अधिक होता है।

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गर्भधारण करने के बाद मधुमेह 

यदि किसी महिला को गर्भधारण के बाद मधुमेह होता है, तो इसे जेस्टेशनल डायबिटीज़ कहते हैं।

आमतौर पर यह 30 ‌वर्ष से अधिक उम्र की उन महिलाओं को होती है जिनका वज़न साधारण से ज़्यादा हो या परिवार में किसी को मधुमेह रहा हो।

जिन महिलाओं की गर्भावस्था में अतिरिक्त इंसुलिन नहीं बनता उन्हें गर्भावस्था का मधुमेह हो जाता है।

यह लगभग तीन फीसदी महिलाओं में होता है।

यह मधुमेह प्रसव के बाद ठीक भी हो जाता है।

लेकिन ऐसी महिलाओं को टाइप-2 मधुमेह होने की आशंका भी रहती है।

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शुगर की जांच है ज़रूरी 

गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण बाहरी तौर पर नहीं पहचाने जा सकते इसीलिए शुगर स्तर की जांच कराई जाती है।

पेशाब की जांच प्रसव से पहले देखभाल वाली प्रक्रिया का ही सामान्य हिस्सा है।

यदि शुगर का स्तर सामान्य से अधिक है, तो यह गर्भावधि मधुमेह होने का संकेत हो सकता है।

इन परीक्षणों से यदि गर्भावधि मधुमेह होने का आभास होता है तो फिर डॉक्टर से सुझाव लेते हुए फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट कराना आवश्यक है।

इस परीक्षण के लिए सुबह खाली पेट रक्त का नमूना लिया जाता है।

पेशाब की जांच में शुगर का स्तर बढ़ा हुआ पाया जाता है, तो डॉक्टर ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (जीटीटी) करने की सलाह देते हैं।

इस जांच के लिए सुबह खाली पेट खून का नमूना लिया जाता है, जिससे रक्त में शुगर का स्तर जांचा जा सके।

इसके बाद ग्लूकोज दिया जाता है और दो घंटे बाद फिर से रक्त का नमूना लिया जाता है।

दूसरे नमूने से यह पता चलता है कि शुगर का सेवन करने पर शरीर की क्या प्रतिक्रिया होती है।

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गर्भधारण के पूर्व परामर्श Healthy Pregnancy with Diabetes in Hindi

यदि आहार व्यायाम के ज़रिए मधुमेह नियंत्रित है तो गर्भधारण किया जा सकता है।

यदि ग्लूकोज स्तर अधिक है, तो पहले इंसुलिन से इसे नियंत्रित करने के बाद ही गर्भधारण किया जाए तो बेहतर है।

मधुमेह की दवा ले रही हैं तो इन्हें बंद कर देना चाहिए। ये गर्भस्थ शिशु के लिए सुरक्षित नहीं हैं।

इंसुलिन चिकित्सा गर्भस्थ शिशु के लिए अधिक सुरक्षित मानी जाती है।

वक़्त रहते पहचानें मधुमेह के लक्षण 

अगर शरीर में होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान दिया जाए, तो मधुमेह की शुरुआत में ही उसे पहचाना जा सकता है।

*अधिक प्यास लगना * बार-बार पेशाब आना * अधिक भूख लगना * वज़न कम होना या ज़्यादा बढ़ना * ज़रा सा काम करने पर थकावट होना

ऐसे लक्षणों को सामान्य मानकर नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए।

दिखने में तो यह सब आम हैं, लेकिन इसे अनदेखा करके वक़्त रहते डॉक्टर से सलाह लेना बेहतर होता है।

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